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अर्थ-यथार्थ

सोमवार, 9 मार्च 2009

"नीव की सुदृढ़ता "

"नीव की सुदृढ़ता "जिस प्रकार किसी भवन की नीव जितनी सुदृढ़ होगी , भवन के उतने ही लंबे समय तक खड़े रहने की सभावनाएं अधिक रहती हैं ; उसी प्रकार किसी संस्कृति के बारे में भी 'यही ' कहा जा सकता है ! किसी संस्कृति की नीव की सुदृढ़ता से 'आशय 'क्या है ..
" किसी भी संस्कृति का उद्भव एवं विकास जितना अधिक प्राकृतिक परिवेश में अधिकाधिक प्राकृतिक तत्वों का समावेश करते हुए होता है और जिसके विकास की गति दिशा भी सदैव प्राकृतिक होती है ;वह संस्कृति [समाज ] उतना ही सुदृढ़ होता है |"
चाहे प्राचीन सभ्यता -संस्कृति को समझने के लिए आवश्यक होता है कि सर्वप्रथम उस समाज के सांस्कृतिक -सामाजिक इतिहास को जाने और समझें | प्राचीन काल में किसी समाज में धार्मिक विविधता का आभाव होने के कारण, सामान्यतः समाज का धार्मिक इतिहास ही उस समाज का सामाजिक- सांस्कृतिक इतिहास भी होता है ; यही 'मिथक' के रूप में प्रसिद्ध होते हैं ; भारतीय सन्दर्भ में इन्हे ''वैदिक एवं पुराणिक आख्यान '' कहा जाता है | यह मिथिकीय विवरण ही किसी संस्कृति-सभ्यता ओर समाज का प्राचीनतम इतिहास होता है | ये'' मिथिकीय वाङ्मय '' ही किसी प्राचीन सभ्यता के सामाजिक तथा संस्कृतिक 'उद्भव ,संरचना एवं विकास ' की इतिहास गाथा कहतें हैं |"प्राचीन मान्यताओं के अनुसार वह सकल ज्ञान जो चाहे श्रुत हो परन्तु लिपिबद्ध किया जासके अथवा पहले से ही लिपिबद्ध किया जाचुका हो 'वाङ्मय' की श्रेणी में आता है | विषय विशेषज्ञ चाहे जो कहते हों इस विवरण में जा ; इस सन्दर्भ में जो वर्गीकरण मैं करता हूँ उसी का प्रयोग आगे यहाँ पर भी करूँगा |
"सम्पूर्ण वङ्मय को तीन वर्गों में बांटा जा सकता है ",
[1] संहिता , [ 2 ] गाथा , [ 3 ] साहित्य

संहिता :- संहिता के अंतर्गत उपासना-पद्धति एवं कर्मकांड प्रक्रिया , उपासना के मन्त्र आदि आतें हैं| मेरे मान्यता तो यह है की राज्य-व्यवस्था एवं राज-धर्म अर्थात राजा अथवा शासक के कर्तव्य और अधिकार तथा सामाजिक-व्यवस्था के नियम भी इसी यानि कि संहिता की श्रेणी में में ही आयेंगे |
" भारतीय सभ्यता के सन्दर्भ में तो काफी सीमा तक सत्य है | पुराणिक काल तक ,विशेष रूप से महाभारत काल के पहले तक ; इसके पूर्व तक राजा को राज्य और जनता का 'न्यासी ' {ट्रस्टी } माना जाता था और राज्य को जनता कि सामूहिक सम्पति माना जाता था |"
परन्तु महाभारत काल से इन-स्वीकृतियों में अन्तर आने लगा ,आने लगा क्या , आगया | इस समय राजा या राज्यधीश राज्य को अपनी सम्पति समझने लगे थे और यही कारण था कि राज्यों को द्यूत-क्रीडा में दावं तक पर लगा दिया गया { महा भारत कथा जो पुरु वंश के पारिवारिक संघर्षों का बृहत् विवरण एवं इतिहास है |
..[...]

शनिवार, 7 मार्च 2009

राम

राम क्यों आक्षेपित बार बार करते हो राम को ?
कुपुत्र कहलाते जो वन ना जाते
लेते न जो अग्नि-परीक्षा ,धर्म विरुद्ध तुम ही कहते !
धोबी के वचन को भरी सभा जो मर्म न देते ,
केवल रघुवंशी चक्रवर्ती साम्राट राम तुम ही कहते |
क्या बार-बार के उन्ही आक्षेपों की है ग्लानि यह ?
जो अयाचित, राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहते हो
और भी आगे बढ,राम को भगवान के सिंहासन पर
बैठाते हो ||
कोई मेरे इस यक्ष-प्रश्न का उत्तर भी दे पायेगा ,
क्या ? राम सी मर्यादा किसी और ने भी निभाई है?

Quem sou eu

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क्या कहें हम जिंदगी का फ़साना,: कभी ज़माने ने साथ न दिया ,: तो कभी ज़माने के साथ न चल सके,: बाकि है अभी बहुत कुछ सुनना :.......... ......................................... B.Sc.,Retire{d}on 31/12/2008,Unmarrid,

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